भारत बहुभाषी राष्ट्र हैं, इस भूमि के बारे में कहा भी जाता हैं कि यहाँ अनेकता में एकता का सिद्धांत जीवित हैं। ऐसे कालखंड में मातृभाषा उन्नयन संस्थान भारतीय भाषाओँ के आपसी समन्वय यानि बहुभाषा समन्वय की विचारधारा का प्रतिपादन करता हैं। भारतीय भाषाओँ में आपसी समन्वय स्थापित हो, और प्रथम स्थान पर मातृभाषा में शिक्षा एवं कार्यव्यवहार होना चाहिए। वैसे विभिन्न क्षेत्र और भाषाओँ में विभक्त हैं तो ऐसी स्थिति में देश में एक संपर्क भाषा ऐसी भी होनी चाहिए जिसको जानने, समझने और बोलने से सम्पूर्ण राष्ट्र में एक सूत्रता का बोध हो, जनमानस को उस भाषा में कार्य करने से देश के प्रत्येक भू भाग पर रहने वाला भारत का नागरिक सहमत और सहज हो। वर्तमान जनगणना के आंकड़े देखे जाएं तो भारत में ५० प्रतिशत से अधिक जनसंख्या ‘हिन्दी’ भाषा में दक्ष हैं। इस अनुसार हिन्दी भारत की संपर्क भाषा के रूप में स्थापित देश की सबसे बड़ी भाषा हैं और यह भारत की पहचान भी हैं। इन तथ्यों के आधार पर हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करके शासन और जनता को ‘एक राष्ट्र-एक भाषा’ के स्वर को मजबूत करते हुए सम्पूर्ण प्रदेशों और भारत की व्यावसायिक उन्नति की दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए। इसी के साथ सन 1964 में डॉ दौलत सिंह कोठारी आयोग की अनुशंसा का पालन करते हुए शिक्षा नीति में त्रिभाषा फार्मूला स्थापित करना चाहिए।
हिन्दी से अन्य भाषाओँ के समन्वय और हिन्दी जानने-समझने और उपयोग करने से राज्यों में उपलब्ध पर्यटन सम्पदाओं को देश के लोग देखने आएंगे जिससे राज्यों की पर्यटन आय में अभिवृद्धि होगी। एक राज्य के लोग अन्य राज्यों में रोज़गार खोज सकते हैं, काम कर सकते हैं, व्यापार कर सकते हैं।
भारत के वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह का कहना भी है कि ‘भारत विभिन्न भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना महत्व है परन्तु पूरे देश की एक भाषा होना अत्यंत आवश्यक है जो विश्व में भारत की पहचान बने। आज देश को एकता की डोर में बाँधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है तो वो सर्वाधिक बोले जाने वाली हिन्दी भाषा ही है।हम अपनी-अपनी मातृभाषा के प्रयोग को बढाएं और साथ में हिंदी भाषा का भी प्रयोग कर देश की एक भाषा के पूज्य बापू और लौह पुरूष सरदार पटेल के स्वप्न को साकार करने में योगदान दें।’
मातृभाषा उन्नयन संस्थान भाषाई अखण्डता और समन्वय आधारित विचारधारा का पक्षधर है और देश की समस्त भाषाओँ के सम्मान को अक्षुण्ण रखते हुए हिन्दी भाषा को भारत की प्रतिनिधि भाषा अर्थात राष्ट्रभाषा के तौर पर स्थापित करने का भी पक्षधर हैं। इस सिद्धांत से देश की किसी भी भाषा का अहित नहीं होगा, बल्कि समन्वय की नीति से सभी भाषाओँ का सम्मान यथावत रहेगा, उन भाषाओँ के जानकारों में रोज़गार के अवसर उपलब्ध होंगे और हिन्दी को राष्ट्रीय स्तर पर भी बल मिलेगा।