संकल्पना

 ‘सात’ से जोड़ो अपना ‘साथ’

 

राष्ट्रभाषा : विश्व के सभी बड़े देशों की अपनी एक भाषा ऐसी है जो उस देश का प्रतिनिधित्व करती है, जिसे ‘राष्ट्रभाषा’ कहा जाता है। किन्तु विडम्बना यह है कि भारत की कोई भी आधिकारिक राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी भारत में 50 प्रतिशत से अधिक लोगों द्वारा बोली व समझी जाती है और इसमें वो लक्षण भी है जो राष्ट्रभाषा होने के लिए अनिवार्य है। इसीलिए संस्थान हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए प्रयासरत है।

 

जागरुकता: हिन्दी भाषा को लेकर दक्षिण आदि प्रान्त में भ्रम है, जागरुकता का अभाव है और भाषा के वर्चस्व की लड़ाई को लेकर राजनीति जारी है। ऐसे समय में संस्थान राष्ट्रव्यापी जागरुकता के माध्यम से हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार कर रही है, जागरुकता फैला रहा है।

 

रोज़गारमूलक: किसी भी भाषा की सर्व स्वीकार्यता तभी सम्भव है, जब वह समृद्ध होने के साथ-साथ बाज़ार द्वारा भी स्वीकार की जाए। वर्तमान में भारत में हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेज़ी भी बाज़ार पर कब्ज़ा जमाने के लिए लालायित है। भारत विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है, तो इस दौर में संस्थान भारत में हिन्दी को रोज़गारमूलक भाषा बनाने के लिए भी प्रतिबद्धता के साथ कार्य करेगा।

 

न्याय की भाषा: जनता को जनता की भाषा में न्याय नहीं मिलता। अंग्रेज़ी की विधि शब्दावली क्लिष्ट होने के कारण भारत की भोली-भाली जनता अनावश्यक कष्ट झेलती है। इसीलिए संस्थान 50 प्रतिशत से अधिक बोली समझी जाने वाली हिन्दी भाषा व स्थानीय भाषा में न्यायालय की कार्यवाही की स्थापना के लिए भी प्रतिबद्ध है।

 

त्रिभाषा में शिक्षा व्यवस्था: दौलतसिंह कोठारी आयोग की अनुशंसा के अनुसार देश में मिलने वाली शिक्षा में तीन भाषाओं, मातृभाषा, हिन्दी और विदेशी भाषा, में अध्ययन की अनिवार्यता हो, संस्थान इसके लिए भी प्रतिबद्ध है।

 

तकनीकी दक्षता: वर्तमान युग तकनीकी युग है, ऐसे दौर में हिन्दी भाषा के प्रभुत्व को स्थापित करने व संवर्द्धन के लिए आवश्यक अंग है इसका तकनीकी रूप से सबल होना। हिन्दी के अस्तित्व को चिर स्थाई बनाए रखने के लिए पूर्ण निष्ठा से संस्थान हिन्दी के रचनाकारों और उनके लेखन को संग्रहित कर प्रचार-प्रसार करेगा, जिससे हिन्दी की भव्यता चिरकाल तक स्थाई रहे तथा तकनीकी पहलुओं पर हिन्दी को सबल बनाने के लिए संस्थान प्रतिबद्ध है।

 

साहित्य शुचिता: किसी भी भाषा वैभव का पता उसके समृद्ध साहित्य भंडार से चलता है। हिन्दी की गौरवशाली परम्परा तो बहुत समृद्ध है किन्तु वर्तमान में थोड़े दोष आने लग गए हैं, मातृभाषा उन्नयन संस्थान उन दोषों के अवमूलन हेतु कार्य करेगी।

 

 

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