मातृभाषा उन्नयन संस्थान - परिचय
हिन्दी भाषा के प्रसार, भारत की सांस्कृतिक अखण्डता की रक्षा और संस्कारों का सिंचन कर वैभवशाली भारत की परिकल्पना को साकार करने के उद्देश्य से माँ अहिल्या की नगरी इंदौर से मातृभाषा उन्नयन संस्थान का उदय हुआ। संस्थान का उद्देश्य है हिन्दी को भारत की राजभाषा से राष्ट्रभाषा बनाया जाए। संस्थान के संरक्षक वरिष्ठ पत्रकार और विचारक डॉ. वेद प्रताप वैदिक जी, सुप्रसिद्ध साहित्यकार अहद प्रकाश जी व अज्ञेय के चौथा सप्तक में शामिल कवि राजकुमार कुम्भज जी हैं। इसके संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ हैं।
Dr. Arpan Jain (Avichal)
संस्थान द्वारा चलाये गए अभियान
संस्थान द्वारा हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने के लिए भारत के लोगों का लिखित समर्थन प्राप्त किया जा रहा हैं, इसका मूल उद्देश्य एक तरह से जनमत संग्रहण हैं। ताकि निकट भविष्य में हिन्दी का पक्ष न्यायालय में रखने के लिए हमारे पास पर्याप्त समर्थन भी हो कि कितने भारतीय हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाना चाहते हैं और क्यों बनाना चाहते हैं। इसके माध्यम से विधिक दस्तावेजों में संस्थान का पक्ष मजबूत होगा।
मातृभाषा उन्नयन संस्थान के मुख्य उद्देश्य
'सात' से जोड़ो अपना 'साथ'
राष्ट्रभाषा
विश्व के सभी बड़े देशों की अपनी एक भाषा ऐसी है जो उस देश का प्रतिनिधित्व करती है, जिसे ‘राष्ट्रभाषा’ कहा जाता है। किन्तु विडम्बना यह है कि भारत की कोई भी आधिकारिक राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी भारत में 50 प्रतिशत से अधिक लोगों द्वारा बोली व समझी जाती है और इसमें वो लक्षण भी है जो राष्ट्रभाषा होने के लिए अनिवार्य है। इसीलिए संस्थान हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए प्रयासरत है।
जागरुकता
हिन्दी भाषा को लेकर दक्षिण आदि प्रान्त में भ्रम है, जागरुकता का अभाव है और भाषा के वर्चस्व की लड़ाई को लेकर राजनीति जारी है। ऐसे समय में संस्थान राष्ट्रव्यापी जागरुकता के माध्यम से हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार कर रही है, जागरुकता फैला रहा है।
रोज़गारमूलक
किसी भी भाषा की सर्व स्वीकार्यता तभी सम्भव है, जब वह समृद्ध होने के साथ-साथ बाज़ार द्वारा भी स्वीकार की जाए। वर्तमान में भारत में हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेज़ी भी बाज़ार पर कब्ज़ा जमाने के लिए लालायित है। भारत विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है, तो इस दौर में संस्थान भारत में हिन्दी को रोज़गारमूलक भाषा बनाने के लिए भी प्रतिबद्धता के साथ कार्य करेगा।
न्याय की भाषा
जनता को जनता की भाषा में न्याय नहीं मिलता। अंग्रेज़ी की विधि शब्दावली क्लिष्ट होने के कारण भारत की भोली-भाली जनता अनावश्यक कष्ट झेलती है। इसीलिए संस्थान 50 प्रतिशत से अधिक बोली समझी जाने वाली हिन्दी भाषा व स्थानीय भाषा में न्यायालय की कार्यवाही की स्थापना के लिए भी प्रतिबद्ध है।
त्रिभाषा में शिक्षा व्यवस्था
दौलतसिंह कोठारी आयोग की अनुशंसा के अनुसार देश में मिलने वाली शिक्षा में तीन भाषाओं, मातृभाषा, हिन्दी और विदेशी भाषा, में अध्ययन की अनिवार्यता हो, संस्थान इसके लिए भी प्रतिबद्ध है।
तकनीकी दक्षता
वर्तमान युग तकनीकी युग है, ऐसे दौर में हिन्दी भाषा के प्रभुत्व को स्थापित करने व दौलतसिंह कोठारी आयोग की अनुशंसा के अनुसार देश में मिलने वाली शिक्षा में तीन भाषाओं, मातृभाषा, हिन्दी और विदेशी भाषा, में अध्ययन की अनिवार्यता हो, संस्थान इसके लिए भी प्रतिबद्ध है। संवर्द्धन के लिए आवश्यक अंग है इसका तकनीकी रूप से सबल होना। हिन्दी के अस्तित्व को चिर स्थाई बनाए रखने के लिए पूर्ण निष्ठा से संस्थान हिन्दी के रचनाकारों और उनके लेखन को संग्रहित कर प्रचार-प्रसार करेगा, जिससे हिन्दी की भव्यता चिरकाल तक स्थाई रहे तथा तकनीकी पहलुओं पर हिन्दी को सबल बनाने के लिए संस्थान प्रतिबद्ध है।
साहित्य शुचिता
किसी भी भाषा वैभव का पता उसके समृद्ध साहित्य भंडार से चलता है। हिन्दी की गौरवशाली परम्परा तो बहुत समृद्ध है किन्तु वर्तमान में थोड़े दोष आने लग गए हैं, मातृभाषा उन्नयन संस्थान उन दोषों के अवमूलन हेतु कार्य करेगी।
विचारधारा
हिन्दी से अन्य भाषाओँ के समन्वय और हिन्दी जानने-समझने और उपयोग करने से राज्यों में उपलब्ध पर्यटन सम्पदाओं को देश के लोग देखने आएंगे जिससे राज्यों की पर्यटन आय में अभिवृद्धि होगी। एक राज्य के लोग अन्य राज्यों में रोज़गार खोज सकते हैं, काम कर सकते हैं, व्यापार कर सकते हैं।
संस्थान द्वारा प्रदत्त सम्मान व अलंकरण
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